सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्ग

 

 🌼प्रथम ज्योतिर्लिङ्ग सोमनाथके प्रादुर्भावकी कथा और उसकी महिमा🌼

---- शिव महापुराण, कोटिरुद्र संहिता अध्याय ८-१४

Somnath temple - Wikipedia

सूतजी बोले,

मैंने सदगुरूसे जो कुछ सुना है, वह ज्योतिर्लिङ्गोंका माहात्म्य तथा उनके प्राकट्यका प्रसङ्ग अपनी बुद्धिके अनुसार संक्षेपसे ही सुनाऊँगा। तुम सब लोग सुनो। मुने! मुख्य बारा ज्योतिर्लिङ्गोमें सबसे पहले सोमनाथ का नाम आता है; अतः पहले उन्हींके माहात्म्यको सावधान होकर सुनो। मुनीश्वरो! महामुनी प्रजापति दक्षने अपनी अश्विनी आदि सत्ताईस कन्याओंका विवाह चन्द्रमाके साथ किया था। चन्द्रमाको स्वामीके रूपमें पाकर वे दक्षकन्याएँ विशेष शोभा पाने लगी तथा चन्द्रमा भी उन्हें पतीके रूपमें पाकर निरन्तर सुशोभित होने लगे। 

उन सब पत्नियों में भी जो रोहिणी नाम की पत्नी थी, एकमात्र वही चंद्रमा की जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं हुई। इससे दूसरी स्त्रीयों को बड़ा दुख हुआ। वह सब अपने पिता की शरण में गई। वहां जाकर उन्होंने जो भी दुःख था, उसे पिता को निवेदन किया। द्विजो! वह सब सुनकर दक्ष भी दुःखी हो गए और चंद्रमा के पास आकर शांतिपूर्वक बोले।

दक्षने कहा, 

कलानिधे! तुम निर्मल कुल में उत्पन्न हुए हो। तुम्हारे आश्रय में रहने वाली जितनी स्त्रिया है, उन सब के प्रति तुम्हारे मन में न्यूनाधिक भाव क्यों है? तुम किसी को अधिक और किसी को कम प्रेम क्यों करते हो? अब तक जो किया, सो किया, अब आगे फिर कभी ऐसा विषमता पूर्ण बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिए; क्योंकि उसे नर्क देने वाला बताया गया है।

सुतजी कहते है,

महर्षियो!, अपने दामाद चंद्रमा से स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घर को चले गए। उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था, कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा। पर चंद्रमा ने प्रबल भाव से विवश होकर उनकी बात नहीं मानी। वे रोहिणी में ही आसक्त हो गए थे कि, दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नहीं करते थे। इस बात को सुनकर दक्ष दुःखी हो फिर स्वयं आकर चंद्रमा को उत्तम नीति से समझाने तथा न्यायोचित बर्ताव के लिए प्रार्थना करने लगे।

दक्ष बोले,

चद्रमा! सुनो, मैं पहले अनेक बार तुम से प्रार्थना कर चुका हू। फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी। इसलिए आज शाप देता हू, कि तुम्हें क्षय रोग हो जाय।

सूतजी कहते है,

दक्ष के इतना कहते ही क्षण भर में चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्त हो गए। उनके क्षीण होते ही उस समय सब और महान् हाहाकार मच गया सब देवता और ऋषि कहने लगे कि 'हाय! हाय!' अब क्या करना चाहिए? चंद्रमा कैसे ठीक होंगे? मुने! इस प्रकार दुःख में पडकर भी सब लोग विव्हल हो गए। चंद्रमाने इंद्र आदि सब देवताओं तथा ऋषियों को अपनी अवस्था सूचित की। तब इंद्र आदि देवता तथा वशिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्मा जी की शरण में गए।

उनकी बात सुनकर ब्रह्माजीने कहा,

देवताओं! जो हुआ, सो हुआ। अब वह निश्चय ही पलट नहीं सकता। अतः उसके निवारण के लिए मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय बताता हू। आदर पूर्वक सुनो। चंद्रमा देवताओं के साथ प्रभास नामक शुभ क्षेत्र में जाए और वह मृत्युंजय मंत्र का विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान् शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके वहां चंद्रदेव नित्य तपस्या करें। इससे प्रसन्न होकर शिव उन्हें क्षय रहित कर देंगे।

तब देवताओं तथा ऋषियों के कहने से ब्रह्मा जी की आज्ञाके अनुसार चंद्रमा ने वहां छः महीने तक निरंतर तपस्या की, मृत्युंजय मंत्र से भगवान ऋषभध्वज का पूजन किया। दस करोड़ मंत्र का जाप और मृत्युंजय का ध्यान करते हुए चंद्रमा वह स्थिर चित्त होकर लगातार खड़े रहे। उन्हें तपस्या करते देख भक्तवत्सल भगवान् शंकर प्रसन्न हो उनके सामने प्रकट हो गए और अपने भक्त चंद्रमा से बोले।

शंकरजीने कहा,

चंद्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो; तुम्हारे मन में जो अभीष्ट हो, वह वर मांगो। मैं पसंद हू। तुम्हें इसके लिए संपूर्ण और उत्तम वर प्रदान करूंगा।

चंद्रमा बोले,

देवेश्वर! यदि आप प्रसन्न है तो मेरे लिए क्या असाध्य हो सकता है; तथापि प्रभु! शंकर! आप मेरे शरीर के इस क्षयरोग का निवारण कीजिए। मुझसे जो अपराध बन गया हो, उसे क्षमा कीजिए।

शंकर ने कहा,

चंद्रदेव! एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो और दूसरे पक्ष में फिर वह निरंतर बढ़ती रहे। तदनंतर चंद्रमाने भक्ति भाव से भगवान शंकरकी स्तुति की। इससे पहले निराकार होते हुए भी वे भगवान् शिव फिर साकार हो गए। देवताओं पर प्रसन्न हो उस क्षेत्र के महात्म्य को बढ़ाने तथा चंद्रमा के यश का विस्तार करने के लिए भगवान् शंकर उन्हीं के नाम पर वहां सोमेश्वर कहलाए और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए। ब्राह्मणों! सोमनाथ का पूजन करने से उपासक के क्षय तथा कोड आदि रोगों का नाश कर देते है। ये चंद्रमा धन्य है, कृतकृत्य है, जिनके नाम से तीनों लोकों के स्वामी साक्षात् भगवान् शंकर भूतल को पवित्र करते हुए प्रभास क्षेत्र में विद्यमान है। यही संपूर्ण देवताओं ने सोमकुंड की भी स्थापना की है, जिस में शिव और ब्रह्मा का सदा निवास माना जाता है। चंद्रकुंड इस भूतल पर पाप नाशक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। जो मनुष्य उसमें स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। क्षय आदी जो असाध्य रोग होते हैं, वे सब उस कुंड में छः मास तक स्नान करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य जिस फल के उद्देश्य से इस उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, उस फल को सर्वदा प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।

चंद्रमा निरोग होकर अपना पुराना कार्य संभालने लगे। इस प्रकार मैंने सोमनाथ की उत्पत्ति का सारा प्रसंग सुना दिया। मुनश्वरो! इस तरह सोमेश्वर लिंग का प्रादुर्भाव हुआ है। जो मनुष्य सोमनाथ के प्रादुर्भाव की इस कथा को सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह संपूर्ण विश्व को पाता और सब पापों से मुक्त हो जाता है।

Yatra Darshan - सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple)

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