१.१२ - पौलोमपर्वणि सर्पसत्रप्रस्तावनायां द्वादशोऽध्यायः

  आदिपर्व - अनुक्रमणिका

(जनमेजयके सर्पसत्रके विषयमें रुरुकी जिज्ञासा और पिताद्वारा उसकी पूर्ति)

रुरुरुवाच 🗣️

कथं हिंसितवान् सर्पान् स राजा जनमेजयः ।

सो वा हिंसितास्तत्र किमर्थं द्विजसत्तम ॥ १ ॥

रुरुने पूछा- 🗣️

द्विजश्रेष्ठ ! राजा जनमेजयने सोर्पोंकी हिंसा कैसे की ? अथवा उन्होंने किसलिये यज्ञमें सर्पोंकी हिंसा करवायी ? ॥ १ ॥

किमर्थ मोक्षिताश्चैव पन्नगास्तेन धीमता ।

आस्तीकेन द्विजश्रेष्ठ श्रोतुमिच्छाम्यशेषतः ॥ २ ॥

विप्रवर परम बुद्धिमान् महात्मा आस्तीकने किसलिये सर्पोंको उस यज्ञसे बचाया था ? यह सब मैं पूर्णरूपसे सुनना चाहता हूँ ॥२॥

ऋषिरुवाच 🗣️

श्रोष्यसि त्वं रुरो सर्वमास्तीकचरितं महत् ।

ब्राह्मणानां कथयतामित्युक्त्वान्तरधीयत ॥ ३ ॥

ऋषिने कहा- 🗣️

रुरो ! तुम कथावाचक ब्राह्मणों के मुखसे आस्तीकका महान् चरित्र सुनोगे। ऐसा कहकर सहस्रपाद मुनि अन्तर्धान हो गये ॥ ३ ॥

सौतिरुवाच 🗣️

रुरुश्चापि वनं सर्वे पर्यधावत् समन्ततः।

तमृर्षि नष्टमन्विच्छन् संभ्रान्तोन्यपतद् भुवि ॥ ४ ॥

उग्रश्रवाजी कहते हैं- 🗣️

तदनन्तर रुरु वहाँ अदृश्य हुए मुनिकी खोजमें उस वनके भीतर सब ओर दौड़ता रहा और अन्तमें थककर पृथ्वीपर गिर पड़ा ॥ ४ ॥

स मोहं परमं गत्वा नष्टसंज्ञ इवाभवत्।

तदृषेर्वचनं तथ्यं चिन्तयानः पुनः पुनः॥ ५॥

लब्धसंज्ञो रुरुश्चायात् तदाचख्यौ पितुस्तदा।

पिता चास्य तदाख्यानं पृष्टः सर्वे न्यवेदयत् ॥ ६॥

गिरनेपर उसे बड़ी भारी मूर्छाने दबा लिया। उसकी चेतना नष्ट-सी हो गयी । महर्षिके यथार्थ वचनका बार-बार चिन्तन करते हुए होशमें आनेपर रुरु घर लौट आया । उस समय उसने पितासे वे सब बातें कह सुनायीं और पितासे भी आस्तीकका उपाख्यान पूछा । रुरुके पूछनेपर पिताने सब कुछ बता दिया ॥ ५-६ ॥ 

इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि सर्पसत्रप्रस्तावनायां द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ 

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत पौलोमपर्व में सर्पसत्रप्रस्तावना-विषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १२ ॥

  आदिपर्व - अनुक्रमणिका

No comments:

Post a Comment

Followers