(जनमेजयके सर्पसत्रके विषयमें रुरुकी जिज्ञासा और पिताद्वारा उसकी पूर्ति)
रुरुरुवाच 🗣️
कथं हिंसितवान्
सर्पान् स राजा जनमेजयः ।
सो वा हिंसितास्तत्र
किमर्थं द्विजसत्तम ॥ १ ॥
रुरुने पूछा- 🗣️
द्विजश्रेष्ठ ! राजा
जनमेजयने सोर्पोंकी हिंसा कैसे की ? अथवा उन्होंने
किसलिये यज्ञमें सर्पोंकी हिंसा करवायी ? ॥ १ ॥
किमर्थ मोक्षिताश्चैव
पन्नगास्तेन धीमता ।
आस्तीकेन द्विजश्रेष्ठ
श्रोतुमिच्छाम्यशेषतः ॥ २ ॥
विप्रवर परम
बुद्धिमान् महात्मा आस्तीकने किसलिये सर्पोंको उस यज्ञसे बचाया था ? यह सब मैं पूर्णरूपसे सुनना चाहता हूँ ॥२॥
ऋषिरुवाच 🗣️
श्रोष्यसि त्वं रुरो
सर्वमास्तीकचरितं महत् ।
ब्राह्मणानां
कथयतामित्युक्त्वान्तरधीयत ॥ ३ ॥
ऋषिने कहा- 🗣️
रुरो ! तुम कथावाचक
ब्राह्मणों के मुखसे आस्तीकका महान् चरित्र सुनोगे। ऐसा कहकर सहस्रपाद मुनि
अन्तर्धान हो गये ॥ ३ ॥
सौतिरुवाच 🗣️
रुरुश्चापि वनं सर्वे
पर्यधावत् समन्ततः।
तमृर्षि
नष्टमन्विच्छन् संभ्रान्तोन्यपतद् भुवि ॥ ४ ॥
उग्रश्रवाजी कहते हैं-
🗣️
तदनन्तर रुरु वहाँ
अदृश्य हुए मुनिकी खोजमें उस वनके भीतर सब ओर दौड़ता रहा और अन्तमें थककर पृथ्वीपर
गिर पड़ा ॥ ४ ॥
स मोहं परमं गत्वा
नष्टसंज्ञ इवाभवत्।
तदृषेर्वचनं तथ्यं
चिन्तयानः पुनः पुनः॥ ५॥
लब्धसंज्ञो
रुरुश्चायात् तदाचख्यौ पितुस्तदा।
पिता चास्य तदाख्यानं
पृष्टः सर्वे न्यवेदयत् ॥ ६॥
गिरनेपर उसे बड़ी भारी मूर्छाने दबा लिया। उसकी चेतना नष्ट-सी हो गयी । महर्षिके यथार्थ वचनका बार-बार चिन्तन करते हुए होशमें आनेपर रुरु घर लौट आया । उस समय उसने पितासे वे सब बातें कह सुनायीं और पितासे भी आस्तीकका उपाख्यान पूछा । रुरुके पूछनेपर पिताने सब कुछ बता दिया ॥ ५-६ ॥
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि सर्पसत्रप्रस्तावनायां द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत पौलोमपर्व में सर्पसत्रप्रस्तावना-विषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १२ ॥
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