🕉️ केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा 🕉️
----- शिवमहापुराण, कोटिरुद्र संहिता - अध्याय १९
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सूतजी कहते हैं-
ब्राह्मणो ! भगवान् विष्णुके जो नर-नारायण नामक दो अवतार हैं और भारतवर्षके बदरिकाश्रमतीर्थमें तपस्या करते हैं, उन दोनोंने पार्थिव शिवलिङ्ग बनाकर उसमें स्थित हो पूजा ग्रहण करनेके लिये भगवान् शम्भुसे प्रार्थना कि, शिवजी भक्तोंके अधीन होनेके कारण प्रतिदिन उनके बनाये हुए पार्थिवलिङ्ग में पूजित होनेके लिये आया करते थे। जब उन दोनों के पार्थिव-पूजन करते बहुत दिन बीत गये, तब एक समय परमेश्वर शिवने प्रसन्न होकर कहा - 'मैं तुम्हारी आराधनासे बहुत संतुष्ट हु। तुम दोनों मुझसे वर माँगो।' उस समय उनके ऐसा कहनेपर नर और नारायणने लोगोके हितकी कामनासे कहा - 'देवेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो अपने स्वरूपसे पूजा प्रहण करनेके लिये यहीं स्थित हो जाइये।'
उन दोनों बन्धुओके इस प्रकार अनुरोध करनेपर कल्याणकारी महेश्वर हिमालयके उस केदारतीर्थमें स्वयं ज्योतिर्लिङ्गके रूपमें स्थित हो गये। उन दोनोंसे पूजित होकर सम्पूर्ण दुःख और भयका नाश करनेवाले शम्भु लोगों का उपकार करने और भक्तोंको दर्शन देनेके लिये स्वयं केदारेश्वरके नामसे प्रसिद्ध हो वहाँ रहते हैं। वे दर्शन और पूजन करनेवाले भक्तोंको सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं। उसी दिनसे लेकर जिसने भी भक्तिभावसे केदारेश्वरका पूजन किया, उसके लिये स्वप्नमें भी दुःख दुर्लभ हो गया।जो भगवान् शिवका प्रिय भक्त वहाँ शिवलिङ्गके निकट शिवके रूपसे अंकित वलय (कंगण या कड़ा) चढ़ाता है, वह उस वलययुक्त स्वरूपका दर्शन करके समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है, साथ ही जीवन्मुक्त भी हो जाता है। जो बदरीवनकी यात्रा करता है, उसे भी जीवन-मुक्ति प्राप्त होती है। नर और नारायणके तथा केदारेश्वर शिवके रूपका दर्शन करके मनुष्य मोक्षका भागी होता है, इसमें संशय नहीं है। केदारेश्वरमें भक्ति रखनेवाले जो पुरुष वहाँकी यात्रा आरम्भ करके उनके पासतक पहुँचने के पहले मार्गमें ही मर जाते हैं, वे भी मोक्ष पा जाते हैं-इसमें विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है। केदारतीर्थमें पहुँचकर वहाँ प्रेमपूर्वक केदारेश्वरकी पूजा करके वहाँका जल पी लेनेके पश्चात् मनुष्यका फिर जन्म नहीं होता। ब्राह्मणो! इस भारतवर्षमें सम्पूर्ण जीवोंको भक्तिभावसे भगवान् नर - नारायणकी तथा केदारेश्वर शम्भुकी पूजा करनी चाहिये।
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