🕉️ मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग 🕉️
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-----शिवमहापुराण, कोटिरुद्र संहिता - अध्याय १५
सूतजी कहते है -
महर्षियो! अब मैं द्वितीय ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुनके प्रादुर्भावका प्रसंग सुनाता हूं, जिसे सुनकर बुद्धिमान् पुरुष सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जब महाबली, तारकशत्रु, शिवापुत्र, कुमार कार्तिकेय सारी पृथ्वीकी परिक्रमा करके फिर कैलास पर्वतपर आये और गणेशके विवाह आदिकी बात सुनकर कौच पर्वतपर चले गये, पार्वती और शिवजीके वहा जाकर अनुरोध करनेपर भी नहीं लौटे तथा वहासे भी बारह कोस दूर चले गये, तब शिव और पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारण करके वहाँ प्रतिष्ठित हो गये।
वे दोनों पुत्रस्नेहसे आतुर हो पर्वके दिन अपने पुत्र कुमारको देखनेके लिये उनके पास जाया करते हैं। अमावस्याके दिन भगवान् शंकर स्वयं वहा जाते हैं और पौर्णमासीके दिन पार्वतीजी निश्चय ही वहा पदार्पण करती हैं। उसी दिनसे लेकर भगवान् शिवका मल्लिकार्जुन नामक ज्योतिर्लिंग तीनों लोकोमें प्रसिद्ध हुआ। (उसमें पार्वती और शिव दोनोंकी ज्योतियाँ प्रतिष्ठित हैं। 'मल्लि' का अर्थ पार्वती है और 'अर्जुन' शब्द शिवका वाचक है।) उस लिङ्गका जो दर्शन करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है और सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है। इसमें संशय नहीं है। इस प्रकार मल्लिकार्जुन नामक द्वितीयज्योतिर्लिङ्गका वर्णन किया गया, जो दर्शनमात्रसे लोगोंके लिये सब प्रकारका सुख देनेवाला बताया गया है।
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