१.१० - पौलोमपर्वणि रुरुडुण्डुभसंवादे दशमोऽध्यायः

  आदिपर्व - अनुक्रमणिका 

(रुरु मुनि और डुण्डुभका संवाद)

रुरुरुवाच 🗣️

मम प्राणसमा भार्या दष्टासीद् भुजगेन ह।

तत्र मे समयो घोर आत्मनोरग वै कृतः ॥ १ ॥

भुजनं वै सदा हन्यां यं यं पश्येयमित्युत ।

ततोऽहं त्वां जिघांसामिजीवितेनाद्य मोक्ष्यसे ॥ २॥

रुरु बोला - 🗣️

सर्प ! मेरी प्राणों के समान प्यारी पत्नीको एक साँपने डॅंस लिया था। उसी समय मैंने यह घोर प्रतिज्ञा कर ली कि जिस-जिस सर्पको देख लूँगा, उसे-उसे अवश्य मार डालूँगा। उसी प्रतिज्ञाके अनुसार मैं तुम्हें मार डालना चाहता हूँ । अतः आज तुम्हें अपने प्राणोंसे हाथ धोना पड़ेगा ॥१-२॥

डुण्डुभ उवाच 🗣️

अन्ये ते भुजगा ब्रह्मन् ये दशन्तीह मानवान् ।

डुण्डुभानहिगन्धेन न त्वं हिंसितुमर्हसि ॥ ३ ॥

डण्डुभने कहा- 🗣️

ब्रह्मन् ! वे दूसरे ही साँप हैं जो इस लोकमें मनुष्योको डॅंसते हैं । साँपोंकी आकृतिमात्रसे ही तुम्हें डुण्डुभोंको नहीं मारना चाहिये ॥ ३ ॥

एकानर्थान् पृथगर्थानेकदुःखान् पृथक्सुखान् ।

डुण्डुभान् धर्मविद् भूत्वान त्वं हिंसितुमर्हसि ॥४॥

अहो ! आश्चर्य है, बेचारे डुण्डुभ अनर्थ भोगनेमें सब सर्पोंके साथ एक हैं। परंतु उनका स्वभाव दूसरे सर्पोंसे भिन्न है। तथा दुःख भोगनेमें तो वे सब सर्पोंके साथ एक हैं; किंतु सुख सबका अलग-अलग है । तुम धर्मज्ञ हो, अत: तुम्हें डुण्डुभोंकी हिंसा नहीं करनी चाहिये ॥४॥

सौतिरुवाच 🗣️

इति श्रुत्वा वचस्तस्य भुजगस्य रुरुस्तदा।

नावधीद् भयसविग्नमृर्षि मत्वाथ डुण्डुभम् ॥ ५ ॥

उग्रश्रवाजी कहते हैं- 🗣️

डुण्डुभ ! सर्पका यह वचन सुनकर रुरुने उसे कोई भयभीत ऋषि. समझा. अतः उसका वध नहीं किया ॥ ५॥ उवाच चैनं भगवान् रुरुः संशमयन्निव।

कामं मां भुजंग ब्रूहि कोऽसीमां विक्रियां गतः॥ ६ ॥

इसके सिवा बड़भागी रुरुने उसे शान्ति प्रदान करते हुए-से कहा-भुजङ्गम ! बताओ इस विकृत (सर्प) योनिमें पड़े हुए तुम कौन हो? ॥ ६ ॥

डुण्डुभ उवाच 🗣️

अयं पुरा रुरो नाम्ना ऋषिरासं सहस्रपात् ।

सोऽहं शापेन. विप्रस्य भुजगत्वमुपागतः ॥ ७ ॥

डुण्डुभने कहा- 🗣️

रुरो ! मैं पूर्वजन्ममें सहस्रपाद नामक ऋषि था; किंतु एक ब्राह्मणके शापसे मुझे इस सर्पयोनिमें आना पड़ा है ॥ ७॥

रुरुरुवाच 🗣️

किमर्थे शप्तवान् क्रुद्धो द्विजस्त्वां भुजगोत्तम ।

कियन्तं चैव कालं ते वपुरेतद् भविष्यति ॥ ८ ॥

रुरुने पूछा- 🗣️

भुजगोत्तम ! उस ब्राह्मणने किसलिये कुपित होकर तुम्हें शाप दिया ? तुम्हारा यह शरीर अभी कितने समयतक रहेगा ? ॥ ८ ॥ 

इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि रुरुडुण्डुभसंवादे दशमोऽध्यायः ॥ १० ॥

 इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत पौलोमपर्व में रुरु-डुण्डुम-संवादविषयक दसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १०॥

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