(जरत्कारुद्वारा वासुकिकी बहिनका पाणिग्रहण)
सौतिरुवाच 🗣️
ततो निवेशाय तदा स
विप्रः संशितव्रतः।
महीं चचार दारार्थी न
च दारानविन्दत ॥ १॥
उग्रश्रवाजी कहते हैं-
🗣️
तदनन्तर वे कठोर
व्रतका पालन करनेवाले ब्राह्मण भार्याकी प्राप्ति के लिये इच्छुक होकर पृथ्वीपर सब
ओर विचरने लगे; किंतु उन्हें
पत्नीकी उपलब्धि नहीं हुई ॥ १ ॥
स कदाचिद् वनं गत्वा
विप्रः पितृवचःस्मरन् ।
चुक्रोश
कन्याभिक्षार्थी तिस्रो वाचः शनैरिव ॥ २॥
एक दिन किसी वनमें
जाकर विप्रवर जरत्कारने पितरोंके वचनका स्मरण करके कन्याकी भिक्षाके लिये तीन बार
धीरे-धीरे पुकार लगायी-कोई भिक्षारूपमें कन्या दे जाय ॥ २॥
तं वासुकिः
प्रत्यगृहादुद्यम्य भगिनीं तदा ।
न स तां प्रतिजग्राह न
सनाम्नीति चिन्तयन् ॥ ३॥
इसी समय नागराज वासुकि
अपनी बहिनको लेकर मुनिकी सेवामें उपस्थित हो गये और बोले, 'यह भिक्षा ग्रहण कीजिये ।' किंतु उन्होंने यह सोचकर कि शायद यह मेरे-जैसे नामवाली न
हो, उसे तत्काल ग्रहण नहीं
किया ॥ ३ ॥
सनाम्नी चोद्यतां
भार्या गृह्णीयामिति तस्य हि ।
मनो
निविष्टमभवज्जरत्कारोर्महात्मनः॥ ४॥
उन महात्मा जरत्कारुका
मन इस बातपर स्थिर हो गया था, कि मेरे-जैसे
नामवाली कन्या यदि उपलब्ध हो तो उसीको पत्नीरूपमें ग्रहण करूँ॥ ४ ॥
तमुवाच महाप्राज्ञो
जरत्कारुर्महातपाः।
किंनाम्नी भगिनीयं ते
ब्रूहि सत्यं भुजंगम ॥ ५॥
ऐसा निश्चय करके परम
बुद्धिमान् एवं महान् तपस्वी जरत्कारुने पूछा-नागराज ! सच-सच बताओ, तुम्हारी इस बहिनका क्या नाम है ? ॥ ५॥
वासुकिरूवाच 🗣️
जरत्कारो जरत्कारुः
स्वसेयमनुजा मम ।
प्रतिगृह्णीष्व
भार्यार्थे मया दत्तां सुमध्यमाम् ।
त्वदर्थे रक्षिता
पूर्व प्रतीच्छेमां द्विजोत्तम ॥ ६॥
वासुकिने कहा – 🗣️
जरत्कारो ! यह मेरी
छोटी बहिन जरत्कारु नामसे ही प्रसिद्ध है । इस सुन्दर कटिप्रदेशवाली कुमारीको
पत्नी बनानेके लिये मैंने स्वयं आपकी सेवामें समर्पित किया है। इसे स्वीकार कीजिये
। द्विजश्रेष्ठ ! यह बहुत पहलेसे आपहीके लिये सुरक्षित रक्खी गयी है, अतः इसे ग्रहण करें ॥६॥
एवमुक्त्वा ततः
प्रादाद् भार्यार्थे वरवर्णिनीम् ।
स च तां प्रतिजग्राह
विधिदृष्टेन कर्मणा ॥७॥
ऐसा कहकर वासुकिने वह सुन्दरी कन्या मुनिको पत्नीरूपमें प्रदान की। मुनिने भी शास्त्रीय विधिके अनुसार उसका पाणिग्रहण किया ॥७॥
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि
वासुकिस्वसृवरणे चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४ ॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत आस्तीकपर्व
में वासुकिकी बहिनके वरणसे सम्बन्ध रखनेवाला चौदहवाँ
अध्याय पूरा हुआ ॥ १४ ॥
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