🌷 अध्याय २२ – पुरुषोत्तमव्रतनियमकथनं 🌷

 


राजोवाच :-

पुरुषोत्तमस्य नियमान्‌ व्रतिनां वद विस्तरात्‌, किं भोज्यं किमभोज्यं वा वर्ज्यावर्ज्ये तपोधन ॥ १ ॥

श्रीनारायण उवाच :-

स एवं भगवान्‌ पृष्ठो भूभृता मुनिर्बाल्मिकिः, पुंसां निःश्रेयसे नूनं तमाह बहु मानयन्‌ ॥ २ ॥

बाल्मीकिरुवाच :-

पुरुषोत्तममासे ये नियमाः परिकीतिताः, तान्‌ श्रृणुष्व मया राजन्‌ कथ्यमानान्‌ समासतः ॥ ३ ॥

हविष्यान्नं च भुञ्जीातं प्रयतः पुरुषोत्तमे, गोधूमाः शालयः सर्वाः सिता मुद्गा यवास्तिलाः ॥ ४ ॥

कलाय-कङ्गु नीवारा वास्तुकं हिमलोचिका, आर्द्रकं कालशाकं च मूलं कन्दं च कर्कटीम्‌ ॥ ५ ॥

रम्भा सैन्धवसामुद्रे लवणे दधिसर्पिषी, पयोऽनुद्‌धृतसारं च पनसाम्रे हरीतकी ॥ ६ ॥

हिंदी अनुवाद :-

दृढ़धन्वा राजा बोला – हे तपोधन! पुरुषोत्तम मास के व्रतों के लिए विस्तार पूर्वक नियमों को कहिये, भोजन क्या करना चाहिये? और क्या नहीं करना चाहिये? और व्रती को व्रत में क्या मना है? विधान क्या है? ॥ १ ॥

श्रीनारायण बोले – इस प्रकार राजा दृढ़धन्वा ने बाल्मीकि मुनि से पूछा, बाद लोगों के कल्याण के लिए बाल्मीकि मुनि ने सम्मान पूर्वक राजा से कहा ॥ २ ॥

बाल्मीकि मुनि बोले – हे राजन्‌! पुरुषोत्तम मास में जो नियम कहे गये हैं, मुझसे कहे जानेवाले उन नियमों को संक्षेप में सुनिए ॥ ३ ॥

नियम में स्थित होकर पुरुषोत्तम मास में हविष्यान्न भोजन करे, गेहूँ, चावल, मिश्री, मूँग, जौ, तिल ॥ ४ ॥

मटर, साँवा, तिन्नी का चावल, बथुवा, हिमलोचिका, अदरख, कालशाक, मूल, कन्द, ककड़ी ॥ ५ ॥

केला, सेंधा नोन, समुद्रनोन, दही, घी, बिना मक्खन निकाला हुआ दूध, कटहल, आम, हरड़, ॥ ६ ॥

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पिप्पली जीरकं चैव नागरं चैव तिन्तिणी, क्रमुकं लवली धात्री फलान्यगुडमैक्षवम्‌ ॥ ७ ॥

अतैलपक्वं मुनयो हविष्यं प्रवदन्ति च, हविष्यभोजनं नॄणामुपवाससमं विदुः ॥ ८ ॥

सर्वामिषाणि मांसं च क्षौद्रं सौवीरकं तथा, राजमासादिकं चैव राजिका मादकं तथा ॥ ९ ॥

द्विदलं तिलतैलं च तथान्नं शल्यदूषितम्‌, भावदुष्टं क्रियादुष्टं शब्ददुष्टं च वर्जयेत्‌ ॥ १० ॥

परान्नं  च परद्रोहं परदारागमं तथा, तीर्थं विना प्रयाणं च परदेशं परित्यजेत्‌ ॥ ११ ॥

देववेदद्विजानां च गुरुगोव्रतिनां तथा, स्त्रीराजमहतां निन्दां वर्जयेत्‌ पुरुषोत्तमे ॥ १२ ॥

प्राण्यन्नमामिषं चूर्णं फले जम्बीरमामिषम्‌, धान्ये मसूरिका प्रोक्ता अन्नं पर्युषितं तथा ॥ १३ ॥

अजागोमहिषोदुग्धादन्यद्‌दुग्धादि चामिषम्‌, द्विजक्रीता रसाः सर्वे लवणं भूमिजं तथा ॥ १४ ॥

हिंदी अनुवाद :-

पीपर, जीरा, सोंठ, इमली, सुपारी, लवली, आँवला, ईख का गुड़ छोड़ कर इन फलों को ॥ ७ ॥

और बिना तेल के पके हुए पदार्थ को हविष्य कहते हैं, हविष्य भोजन मनुष्यों को उपवास के समान कहा गया है ॥ ८ ॥

समस्त आमिष, माँस, शहद, बेर, राजमाषादिक, राई और मादक पदार्थ ॥ ९ ॥

दाल, तिल का तेल, लाह से दूषित, भाव से दूषित, क्रिया से दूषित, शब्द से दूषित, अन्न को त्याग करे ॥ १० ॥

दूसरे का अन्न, दूसरे से वैर, दूसरे की स्त्री से गमन, तीर्थ के बिना देशान्तर जाना व्रती छोड़ देवे ॥ ११ ॥

देवता, वेद, द्विज, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री, राजा और महात्माओं की निन्दा करना पुरुषोत्तम मास में त्याग देवे ॥ १२ ॥

सूतिका का अन्न मांस है, फलों में जम्बीरी नीबू मांस है, धान्यों में मसूर की दाल मांस है और बासी अन्न मांस है ॥ १३ ॥

बकरी, गौ, भैंस के दूध को छोड़कर और सब दूध आदि मांस है। और ब्राह्मण से खरीदा हुआ समस्त रस, पृथिवी से उत्पन्नक नमक मांस है ॥ १४ ॥

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ताम्रपात्रस्थितं गव्यं जलं चर्मणि संस्थितम्‌, आत्मार्थं पाचितं चान्नमामिषं तद्‌बुधैः स्मृतम्‌ ॥ १५ ॥

ब्रह्मचर्यमधःशय्यां पत्रावल्यां च भोजनम्‌, चतुर्थकाले भुक्तिं च प्रकुर्यात्‌ पुरुषोत्तमे ॥ १६ ॥

रजस्वलाऽन्त्यज-म्लेच्छ-पतितैर्व्रात्यकैःसह, द्विजद्विट्‌-वेदबाह्यैश्च न वदेत्‌ पुरुषोत्तमे ॥ १७ ॥

एभिर्दृष्टं च काकैश्च सूतकान्नं च यद्भवेत्‌, द्विःपाचितं च दग्धान्नं नैवाद्यात्‌ पुरुषोत्तमे ॥ १८ ॥

पलाण्डुं लशुनं मुस्तां छत्राकं गृञ्जनं तथा, नालिकं मूलकं शिग्रुं वर्जयेत्‌ पुरुषोत्तमे ॥ १९ ॥

एतानि वर्जयेन्नित्यं व्रती सर्वव्रतेष्वपि, कृछ्राद्यं चापि कुर्वीत स्वशक्त्या विष्णुतुष्टये ॥ २० ॥

कूष्माण्डं बृहती चैव तरुणी मूलकं तथा, श्रीफलं च कलिङ्गं च फलं धात्रीफले तथा ॥ २१ ॥

नारिकेलमलाबुं च पटोलं बदरीफलम्‌, चर्मवृन्ताजिकं वल्ली शाकं तु जलजं तथा ॥ २२ ॥

हिंदी अनुवाद :-

ताँबे के पात्र में रखा हुआ दूध, चमड़े में रखा हुआ जल, अपने लिये पकाया गया अन्न  को विद्वानों ने मांस कहा है ॥ १५ ॥

पुरुषोत्तम मास में ब्रह्मचर्य, पृथिवी में शयन, पत्रावली में भोजन और दिन के चौथे पहर में भोजन करे ॥ १६ ॥

पुरुषोत्तम मास में रजस्वला स्त्री, अन्त्यज, म्लेच्छ, पतित, संस्कारहीन, ब्राह्मण से द्वेष करने वाला, वेद से गिरा हुआ, इनके साथ बातचीत न करे ॥ १७ ॥

इन लोगों से देखा गया और काक पक्षी से देखा गया, सूतक का अन्नच, दो बार पकाया हुआ और भूजे हुए अन्नो को पुरुषोत्तम मास में भोजन नहीं करे ॥ १८ ॥

प्याज, लहसुन, मोथा, छत्राक, गाजर, नालिक, मूली, शिग्रु इनको पुरुषोत्तम मास में त्याग देवे ॥ १९ ॥

व्रती इन पदार्थों को समस्त व्रतों में हमेशा त्याग करे। विष्णु भगवान्‌ के प्रीत्यर्थ अपनी शक्ति के अनुसार कृच्छ्र आदि व्रतों को करे ॥ २० ॥

कोहड़ा, कण्टकारिका, लटजीरा, मूली, बेल, इन्द्रयव, आँवला के फल ॥ २१ ॥

नारियल, अलाबू, परवल, बेर, चर्मशाक, बैगन, आजिक, बल्ली  और जल में उत्पन्न होनेवाले शाक ॥ २२ ॥

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शाकान्येतानि वर्ज्याणि क्रमात्‌ प्रतिपदादिषु ॥ धात्रीफलं रवौ तद्वद्वर्जयेत्‌ सर्वदा गृही ॥ २३ ॥

यद्यद्यो वर्जयेत्किञ्चित्पुरुषोत्तमतुष्टये ॥ तत्पुनर्ब्राह्मणे दत्त्वा भक्षयेत्सर्वदैव हि ॥ २४ ॥

कुर्यादेतांश्च नियमान्‌ व्रती कार्तिकमाघयोः ॥ नियमेन विना राजन्‌ फलं नैवाप्नुयाद्‌व्रती ॥ २५ ॥

उपोषणेन कर्तव्यः शक्तिश्चेत्‌ पुरुषोत्तमः ॥ अथवा घृतपानं च पयःपानमयाचितम्‌ ॥ २६ ॥

फलाहारादि वा कार्यं यथाशक्त्या व्रतार्थिना ॥ व्रतभङ्गो यथा न स्यात्तथा कार्यं विचक्षणैः ॥ २७ ॥

पुण्येऽह्नि प्रातरुत्थाय कृत्वा पौर्वाह्णिकीः क्रियाः ॥ गृह्णीयान्नियमं भक्त्या श्रीकृष्णं च हृदि स्मरन्‌ ॥ २८ ॥

उपवासस्य नक्तस्य चैकभुक्तस्य भूपते ॥ एकं च निश्चयं कृत्वा व्रतमेतत्‌ समाचरेत्‌ ॥ २९ ॥

श्रीमद्भागवतं भक्त्या श्रोतव्यं पुरुषोत्तमे ॥ तत्पुण्यं वचसा वक्तुंी विधाताऽपि न शक्नुयात्‌ ॥ ३० ॥

हिंदी अनुवाद :-

प्रतिपद आदि तिथियों में क्रम से इन शाकों का त्याग करना, गृहस्थाश्रमी रविवार को आँवला सदा ही त्याग करे ॥ २३ ॥

पुरुषोत्तम भगवान्‌ के प्रीत्यर्श्च जिन-जिन वस्तुओं का त्याग करे उन वस्तुओं को प्रथम ब्राह्मण को देकर फिर हमेशा भोजन करे ॥ २४ ॥

व्रती कार्तिक और माघ मास में इन नियमों को करे, हे राजन्‌! व्रती नियम के बिना फलों को नहीं प्राप्त करता है ॥ २५ ॥

यदि शक्ति है तो उपवास करके पुरुषोत्तम का व्रत करे अथवा घृत पान करे अथवा दुग्ध पान करे अथवा बिना माँगे जो कुछ मिल जाय उसको भोजन करे ॥ २६ ॥

अथवा व्रत करनेवाला यथाशक्ति फलाहार आदि करे, जिसमें व्रत भंग न हो विद्वान्‌ इस तरह व्रत का नियम धारण करे ॥ २७ ॥

पवित्र दिन प्रातःकाल उठ कर पूर्वाह्ण की क्रिया को करके भक्ति से श्रीकृष्ण भगवान्‌ का हृदय में स्मरण करता हुआ नियम को ग्रहण करे ॥ २८ ॥

हे भूपते! उपवास व्रत, नक्त व्रत और एकभुक्त इनमें से एक का निश्चय करके इस व्रत को करे ॥ २९ ॥

पुरुषोत्तम मास में भक्ति से श्रीमद्भागवत का श्रवण करे तो उस पुण्य को ब्रह्मा कभी कहने में समर्थ नहीं होंगे ॥ ३० ॥

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शालिग्रामार्चनं कार्यं मासे श्रीपुरुषोत्तमे, तुलसीदललक्षेण तस्य पुण्यमनन्तकम्‌ ॥ ३१ ॥

यथोक्तव्रतिनं दृष्ट्वा मासे श्रीपुरुषोत्तमे, यमदूताः पलायन्ते सिंहं दृष्ट्वा यथा गजाः ॥ ३२ ॥

एतन्मासव्रतं राजन्‌ श्रेष्ठं क्रतुशतादपि, क्रतुं कृत्वाऽऽनुयात्‌ स्वर्गं गोलोकं पुरुषोत्तमे ॥ ३३ ॥

पृथिव्यां यानि तीर्थानि क्षेत्राणि सर्वदेवताः, तद्‌देहे तानि तिष्ठन्ति यः कुर्यात्‌ पुरुषोत्तमम्‌ ॥ ३४ ॥

दुःस्वप्नं चैव दारिद्रयं दुष्कृतं त्रिविधं च यत्‌, तत्सर्वं विलयं याति कृते श्रीपुरुषोत्तमे ॥ ३५ ॥

श्रीपुरुषोत्तमसेवायां निश्चलं हरिसेवकम्‌, विघ्नाद्रक्षन्ति शक्राद्याः पुरुषोत्तमतुष्टये ॥ ३६ ॥

पुरुषोत्तमस्य व्रतिनो यत्र यत्र वसन्ति च, भूतप्रेतपिशाचाद्या न तिष्ठन्ति तदग्रतः ॥ ३७ ॥

हिंदी अनुवाद :-

श्रीपुरुषोत्तम मास में लाख तुलसीदल से शालग्राम का पूजन करे तो उसका अनन्त पुण्य होता है ॥ ३१ ॥

श्रीपुरुषोत्तम मास में कथनानुसार व्रत में स्थित व्रती को देख कर यमदूत सिंह को देख कर हाथी के समान भाग जाते हैं ॥ ३२ ॥

हे राजन्‌! यह पुरुषोत्तम मासव्रत सौ यज्ञों से भी श्रेष्ठ है क्योंकि यज्ञ के करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और पुरुषोत्तम मासव्रत करने से गोलोक को जाता है ॥ ३३ ॥

जो पुरुषोत्तम मासव्रत करता है उसके शरीर में पृथ्वी के जो समस्त तीर्थ और क्षेत्र हैं तथा सम्पूर्ण देवता हैं वे सब निवास करते हैं ॥ ३४ ॥

श्रीपुरुषोत्तम मास का व्रत करने से दुःस्वप्न, दारिद्रय और कायिक, वाचिक, मानसिक पाप ये सब नाश को प्राप्त होते हैं ॥ ३५ ॥

पुरुषोत्तम भगवान्‌ की प्रसन्नता के लिये इन्द्रादि देवता, पुरुषोत्तम मासव्रत में तत्पर हरिभक्त की विघ्नों से रक्षा करते हैं ॥ ३६ ॥

पुरुषोत्तम मासव्रत को करने वाले जिन-जिन स्थानों में निवास करते हैं वहाँ उनके सम्मुख भूत-प्रेत पिशाच आदि नहीं रहते ॥ ३७ ॥

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एवं यो विधिना राजन्‌ कुर्याच्छ्रीपुरुषोत्तमम्‌, सहस्रवद्‌नो नालं तत्फलं वक्तु मञ्जसा ॥ ३८ ॥

श्रीनारायण उवाच :-

पुरुषोत्तमं प्रियममुं परमादरेण कुर्यादनन्यमनसा पुरुषोत्तमो यः, पुरुषोत्तमप्रियतमः पुरुषः स भूत्वा पुरुषोत्तमेन रमते रसिकेश्वरेण ॥ ३९ ॥

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये श्रीनारायणनारदसंवादे दृढधन्वोपाख्याने पुरुषोत्तमव्रतनियमकथनंनाम द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२ ॥

हिंदी अनुवाद :-

हे राजन्‌! इस प्रकार जो विधिपूर्वक पुरुषोत्तम मासव्रत को करेगा उस मासव्रत के फलों को यथार्थ रूप से कहने के लिये साक्षात्‌ शेषनाग भगवान्‌ भी समर्थ नहीं हैं ॥ ३८ ॥

श्रीनारायण बोले – जो पुरुषों में श्रेष्ठ पुरुष मन से अत्यन्त आदर के साथ इस प्रिय पुरुषोत्तम मासव्रत को करता है वह पुरुषों में श्रेष्ठ और अत्यन्त प्रिय होकर रसिकेश्वरर पुरुषोत्तम भगवान्‌ के साथ गोलोक में आनन्द करता है ॥ ३९ ॥

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये श्रीनारायणनारदसंवादे दृढधन्वोपाख्याने पुरुषोत्तमव्रतनियमकथनं नाम द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२ ॥

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