महाभारत महाकाव्य की हस्तलिखित पाण्डुलिपि |
परंपरागत रूप से, महाभारत की रचना का
श्रेय वेदव्यास को दिया जाता है। महाभारत के अनुसार, कथा को २४,००० श्लोकों
के एक छोटे संस्करण से विस्तारित किया जाता है, जिसे केवल भारत कहा
जाता है। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य
का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने
इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया
हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया
गया हैं।
👉🏻 विभिन्न नाम
यह महाकाव्य 'जय संहिता', 'भारत' और 'महभारत' इन तीन नामों से प्रसिद्ध हैं। वास्तव में वेद व्यास जी
ने सबसे पहले १,००,००० श्लोकों के परिमाण के 'भारत' नामक ग्रंथ की रचना की थी, इसमें उन्होने
भारतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य कई महान ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी
राजाओं के उपाख्यानों सहित कई अन्य धार्मिक उपाख्यान भी डाले। इसके बाद व्यास जी
ने २४,००० श्लोकों का बिना किसी अन्य ऋषियों, चन्द्रवंशी-सूर्यवंशी
राजाओं के उपाख्यानों का केवल भारतवंशियों को केन्द्रित करके 'भारत' काव्य बनाया। इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय
होने के कारण इन्हें 'जय' भी कहा जाने
लगा। महाभारत में एक कथा आती है, कि जब देवताओं ने तराजू के एक पासे में चारों
"वेदों" को रखा और दूसरे पर 'भारत ग्रंथ' को रखा, तो 'भारत ग्रंथ' सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ। अतः 'भारत' ग्रंथ की इस
महत्ता (महानता) को देखकर देवताओं और ऋषियों ने इसे 'महाभारत' नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यों में भी यह काव्य 'महाभारत' के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।
👉🏻 ग्रन्थ लेखन
महाभारत में ऐसा वर्णन आता है, कि वेदव्यास जी ने
हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित
होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना
कर ली, परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी
हुई, कि इस काव्य के ज्ञान को सामान्य जन साधारण तक कैसे
पहुँचाया जाये क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था, कि कोई इसे
बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जाएँ। इसलिए ब्रह्मा जी के
कहने पर व्यास गणेश जी के पास पहुँचे। गणेश जी लिखने को तैयार हो गये, किंतु
उन्होंने एक शर्त रखी कि कलम एक बार उठा लेने के बाद काव्य समाप्त होने तक वे बीच
में नहीं रुकेंगे। व्यासजी जानते थे, कि यह शर्त बहुत कठनाईयाँ उत्पन्न कर सकती हैं। अतः
उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी, कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले गणेश जी को उसका अर्थ
समझना होगा। गणेश जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस तरह व्यास जी बीच-बीच में
कुछ कठिन श्लोकों को रच देते थे, तो जब गणेश उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में
ही व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते। इस प्रकार सम्पूर्ण महाभारत ३ वर्षों के
अन्तराल में लिखी गयी। वेदव्यास जी ने सर्वप्रथम पुण्यकर्मा मानवों के
उपाख्यानों सहित एक लाख श्लोकों का आद्य भारत ग्रंथ बनाया। तदन्तर उपाख्यानों को
छोड़कर चौबीस हजार श्लोकों की भारत संहिता बनायी। तत्पश्चात व्यास जी ने साठ लाख
श्लोकों की एक दूसरी संहिता बनायी, जिसके तीस लाख श्लोकों देवलोक में, पंद्रह लाख
पितृलोक में तथा चौदह लाख श्लोक गन्धर्वलोक में समादृत हुए। मनुष्यलोक में एक लाख
श्लोकों का आद्य भारत प्रतिष्ठित हुआ। महाभारत ग्रंथ की रचना पूर्ण करने के बाद वेदव्यास
जी ने सर्वप्रथम अपने पुत्र शुकदेव को इस ग्रंथ का अध्ययन कराया तदन्तर अन्य
शिष्यों वैशम्पायन, पैल, जैमिनि, असित-देवल आदि को इसका अध्ययन कराया। शुकदेव जी ने
गन्धर्वों, यक्षों और राक्षसों को इसका अध्ययन कराया। देवर्षि नारद
ने देवताओं को, असित-देवल ने पितरों को और वैशम्पायन जी ने मनुष्यों को
इसका प्रवचन दिया। वैशम्पायन जी द्वारा महाभारत काव्य जनमेजय के यज्ञ समारोह में
सूत सहित कई ऋषि-मुनियों को सुनाया गया था।
👉🏻 🌎 पृथ्वी के भौगोलिक सन्दर्भ
महाभारत में भारत के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य भौगोलिक
स्थानों का सन्दर्भ भी आता है, जैसे चीन का गोबी मरुस्थल, मिस्र की नील नदी, लाल सागर तथा
इसके अतिरिक्त महाभारत के भीष्म पर्व के जम्बूखण्ड-विनिर्माण पर्व में सम्पूर्ण 🌎 पृथ्वी का मानचित्र भी बताया गया है, जो निम्नलिखित
है-:
सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो
महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं
सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
------------ वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत
👉🏻 अर्थात:
हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश (खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी 🌎 पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है।
एक खरगोश और दो पत्तो का चित्र |
चित्र को उल्टा करने पर बना पृथ्वी का मानचित्र |
उपरोक्त मानचित्र ग्लोब में |
I love this description. After very long time found this complete Mahabharat at one place. Thanks to creater and congratulations for this geart effort.
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