१ - 📚 महाभारतम् - आदिपर्व 📚 ✍

॥ श्रीहरिः ॥

🌷 महाभारतके आदिपर्व के प्रत्येक अध्यायकी पूरी विषयसूची 🌷

✍🏻 प्रस्तावना 

🙏🏻 नम्र निवेदन 🙏🏻

📚 महाभारतम् 📚

१.० - आदिपर्व - अनुक्रमणिका

१.१ - अनुक्रमणिकापर्वणि - प्रथमोऽध्यायः

१.२ - पर्वसंग्रहपर्वणि - द्वितीयोऽध्यायः

१.३ - पौष्यपर्वणि - तृतीयोऽध्यायः

१.४ - पौलोमपर्वणि कथाप्रवेशो नामचतुर्थोऽध्यायः

१.५ - पौलोमपर्वणि - पुलोमाग्निसंवादेपञ्चमोऽध्यायः

.६ - पौलोमपर्वणि - अग्निशापे षष्ठोऽध्यायः

.७ - पौलोमपर्वणि - अग्निशापमोचने सप्तमोऽध्यायः

.८ - पौलोमपर्वणि - प्रमद्वरासर्पदंशेऽष्टमोऽध्यायः

.९ - पौलोमपर्वणि - प्रमद्वराजीवने नवमोऽध्यायः

.१० - पौलोमपर्वणि - रुरुडुण्डुभसंवादे दशमोऽध्यायः

.११ - पौलोमपर्वणि - डुण्डुभशापमोक्ष एकादशोऽध्यायः

.१२ - पौलोमपर्वणि - सर्पसत्रप्रस्तावनायां द्वादशोऽध्यायः

.१३ - आस्तीकपर्वणि - जरत्कारुतत्पितृसंवादे त्रयोदशोऽध्यायः

.१४ - आस्तीकपर्वणि - वासुकिस्वसृवरणे चतुर्दशोऽध्यायः

.१५ - आस्तीकपर्वणि - सर्पाणां मातृशापप्रस्तावे पञ्चदशोऽध्यायः

.१६ - आस्तीकपर्वणि - सार्पादीनामुत्पत्तौ षोडशोऽध्यायः

.१७ - आस्तीकपर्वणि - अमृतमन्थने सप्तदशोऽध्यायः

.१८ - आस्तीकपर्वणि - अमृतमन्थनेऽष्टादशोऽध्यायः

.१९ - आस्तीकपर्वणि - अमृतमन्थनसमाप्तिर्नामैकोनविंशोऽध्यायः

.२० - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे विंशोऽध्यायः

.२१ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे एकविंशतितमोऽध्यायः

.२२ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे समुद्रदर्शनं नाम द्वाविंशोऽध्यायः

.२३ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे त्रयोविंशोऽध्यायः

.२४ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे चतुर्विशोऽध्यायः

.२५ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे पञ्चविंशोऽध्यायः

१.२६ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णेषड्विंशोऽध्यायः

१.२७ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णेसप्तविंशोऽध्यायः

१.२८ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णेअष्टाविंशोऽध्यायः

१.२९ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णेएकोनत्रिंशोऽध्यायः

१.३० - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे त्रिंशोऽध्यायः

१.३१ - आस्तीकपर्वणि - सौपर्णे एकत्रिंशोऽध्यायः


🌞 राघवयादवीयम् 🌕

 राघवयादवीयम्" सनातन धर्म का अद्भुत ...

राघवयादवीयम एक संस्कृत स्त्रोत्र है। यह कांचीपुरम के १७वीं शती के कवि वेंकटाध्वरि द्वारा रचित एक अद्भुत ग्रन्थ है।

'राघवयादवीयम्' में एकसाथ पढ़ें 🌞 रामकथा और 🌕 कृष्णकथा 
 
राघवयादवीयम् ' एक ऐसा ग्रंथ जिसमें ...

क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा, शुरू से अंत को पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा, अंत से शुरू की ओर पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे। जी हां, किसी भी भाषा के ऐसे विद्वान पूरी दुनिया में नहीं मिलेंगे।

इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी ३० श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं ६० श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है राघवयादवीयम। उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

अनुलोम श्लोक
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अनुलोम अर्थ
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूँ जिनके ह्रदय में सीताजी रहती हैं तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्रि की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे।

विलोम श्लोक
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

विलोम अर्थ
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हू जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं तथा जिनकी शोभा समस्त रत्नों की शोभा को हर लेती है।

" राघवयादवीयम" के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-

श्री वेंकटद्वारी
इसकी रचना श्री वेंकटद्वारी ने की थी जिनका जन्म कांचीपुरम के निकट अरसनीपलै में हुआ था। वे वेदान्त देशिक के अनुयायी थे। वे काव्यशास्त्र के पण्डित थे। उन्होने १४ ग्रन्थों की रचना की जिनमें से 'लक्ष्मीसहस्रम्' सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। कहते हैं कि इस ग्रन्थ की रचना पूर्ण होते ही उनकी दृष्टि वापस प्राप्त हो गयी थी।




दक्षिण भारत का अति दुर्लभ और ...

🌷 ॥ पुरुषोत्तम मास ॥ 🌷

शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्‍ण, श्रीमद्‍भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्‍णु भगवान की उपासना की जा‍ती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है।

 पुरुषोत्तम मास में कथा पढ़ने, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। सूर्य की बारह संक्रांति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है।

 पंचांग के अनुसार सारे तिथि-वार, योग-करण, नक्षत्र के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी है, किंतु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मंगल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।

 दान, धर्म, पूजन का महत्व : पुराणे शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। 

 इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है। इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति मिलती है।

पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता होता है। इनमें खास तौर पर सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही ये आपको दूसरे माहों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं।

 पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद् भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्घि होने के साथ आपको पुण्‍य लाभ भी प्राप्त होता है। 

🌷 ॥ पुरुषोत्तम मास माहात्म्य ॥ 🌷

🌼 अधिक मास का सम्पूर्ण फल 🌼

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अध्याय १ - शुकागमने

अध्याय २ - प्रश्‍नविधिर्नाम

अध्याय ३ - अधिमासस्य वैकुण्ठमापणं

अध्याय ४ - मलमासविज्ञप्तिर्नाम

अध्याय ५ - विष्णोर्गोलोकगमने

अध्याय ६ - पुरुषोत्तमविज्ञप्तिर्नाम

अध्याय ७ - अधिमासस्यैश्वर्यप्राप्तिर्नाम

अध्याय ८ - कुमारीविलापो

अध्याय ९ - दुर्वाससस्तपोवनगमनं

अध्याय १० - कुमारीशिवाराधनोद्यौगो

अध्याय ११ - शिववाक्यं

अध्याय १२ - पुरुषोत्तमव्रतोपदेशो

अध्याय १३ - दृढधन्वोपाख्याने दृढधन्वनो मनःखेदो

अध्याय १४ - श्रीनारायणंनारदसंवादे

अध्याय १५ - दृढधन्वो्पाख्यासने सुदेववरप्रदानं 

अध्याय १६ -दृढधन्वोपाख्याने सुदेवप्रतिबोधो

अध्याय १७ - दृढधन्वोपाख्याने सुदेवविलापो

अध्याय १८ - सुदेवपुत्रजीवनं

अध्याय १९ - बाल्मीकिनोक्तदृढधन्वोपाख्याने पुरुषोत्तममासमाहात्म्यकथनं

अध्याय २० - आह्निककथनं

अध्याय २१ - पुरुषोत्तमपूजनविधि

अध्याय २२ - पुरुषोत्तमव्रतनियमकथनं

अध्याय २३ - दृढधन्वोपाख्याने

अध्याय २४ - दीपमाहात्म्यकथनं

अध्याय २५ - व्रतोद्यापनविधिकथनं

अध्याय २६ - गृहीतनियमत्यागो

अध्याय २७ - कदर्योपाख्याने

अध्याय २८ - कपिजन्मनि विमानागमनं

अध्याय २९ - अह्निककथनं

अध्याय ३० - पतिव्रताधर्मनिरूपणं

अध्याय ३१ - श्रवणफलकथनं

Adhik Maas is also known as Purushottam Maas, know Purushottam Maas kahani  and mythological beliefs - अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है,  जानिये इससे जुड़ी खास बातें और पौराणिक

शिव महापुराण - द्वादश ज्योतिर्लिंग कथाएं

 

हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। ये संख्या में १२ है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ओंकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघृष्णेश्वर। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

🌼 मुख्य ज्योतिर्लिंगों का वर्णन 🌼

संसारमें कोई भी वस्तु शिवके स्वरूपसे भिन्न नहीं है। मुनिश्रेष्ठ शौनक! इस भूमण्डलपर जो मुख्य-मुख्य ज्योतिर्लिंग हैं, उनका मैं वर्णन करता हूँ। उनका नाम सुननेमात्रसे पाप दूर हो जाते हैं -


सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारे परमेश्वरम् ॥

केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम् ।

वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे ॥

वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने ।

सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये ॥

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।

सर्वपापैर्विनिर्मुक्तः सर्वसिद्धिफलं लभेत् ॥

अर्थ:-

सौराष्ट्रमें सोमनाथ, श्रीशैलपर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनीमें महाकाल, ओंकारतीर्थमें परमेश्वर, हिमालयके शिखरपर केदार, डाकिनीक्षेत्रें|भीमशंकर, वाराणसीमें विश्वनाथ, गोदावरीके तटपर त्र्यम्बक, चिताभूमिमें वैद्यनाथ, दारुकावनमें नागेश, सेतुबन्धमें रामेश्वर तथा शिवालयमें घुश्मेश्वरका स्मरण करे। जो प्रतिदिन प्रात:काल उठकर इन बारह नामोंका पाठ करता है, उसके सभी प्रकारके पाप छूट जाते हैं और उसे सम्पूर्ण सिद्धियोंका फल प्राप्त हो जाता है। 

इन लिंगोंपर चढ़ाया गया प्रसाद सर्वदा ग्रहण करनेयोग्य होता है, उसे श्रद्धासे विशेष यत्नपूर्वक ग्रहण करना चाहिये। ऐसा करनेवालेके समस्त पाप उसी क्षण विनष्ट हो जाते हैं।

हे मुनीश्वरो! म्लेच्छ, अन्त्यज अथवा नपुंसक कोई भी हो, वह ज्योतिर्लिंगके दर्शनके प्रभावसे द्विजकुलमें जन्म लेकर मुक्त हो जाता है। इसलिये ज्योतिर्लिंगका दर्शन अवश्य करना चाहिये।




क्रम.

ज्योतिर्लिंग

राज्य

स्थिति

वर्णन

सोमनाथ

गुजरात

प्रभास पाटनसौराष्ट्र

श्री सोमनाथ सौराष्ट्र, (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में विराजमान है। इस प्रसिद्ध मंदिर को अतीत में छह बार ध्वस्त एवं निर्मित किया गया है। १०२२ ई में इसकी समृद्धि को महमूद गजनवी के हमले से सार्वाधिक नुकसान पहुँचा था।

मल्लिकार्जुन

आंध्र प्रदेश

कुर्नूल

आन्ध्र प्रदेश प्रांत के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तटपर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।

महाकालेश्वर

मध्य प्रदेश

महाकालउज्जैन

श्री महाकालेश्वर (मध्यप्रदेश) के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तटपर पवित्र उज्जैन नगर में विराजमान है। उज्जैन को प्राचीनकाल में अवंतिकापुरी कहते थे।

ॐकारेश्वर

मध्य प्रदेश

नर्मदा नदी में एक द्वीप पर

मालवा क्षेत्र में श्रीॐकारेश्वर स्थान नर्मदा नदी के बीच स्थित द्वीप पर है। उज्जैन से खण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन हैवहां से यह स्थान 10 मील दूर है। यहां ॐकारेश्वर और मामलेश्वर दो पृथक-पृथक लिंग हैंपरन्तु ये एक ही लिंग के दो स्वरूप हैं। श्रीॐकारेश्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है।

केदारनाथ

उत्तराखंड

केदारनाथ

श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृंगपर स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150 मील और ऋषिकेश से 132 मील दूर उत्तरांचल राज्य में है।

भीमाशंकर

महाराष्ट्र

भीमाशंकर

श्री भीमशंकर का स्थान मुंबई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि पर्वत पर है। यह स्थान नासिक से लगभग 120 मील दूर है। सह्याद्रि पर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशंकर ज्योतिर्लिंग को असम के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में स्थित विशाल शिवमंदिर भीमशंकर का स्थान है।

काशी विश्वनाथ

उत्तर प्रदेश

वाराणसी

वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी के श्रीविश्वनाथजी सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र है।

त्र्यम्बकेश्वर

महाराष्ट्र

त्र्यम्बकेश्वरनिकट नासिक

श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले में पंचवटी से 18 मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी के किनारे है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है।

वैद्यनाथ

महाराष्ट्र

बीड जिला

महाराष्ट्र में पासे परभनी नामक जंक्शन हैवहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी हैइस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिंग माना जाता है। परंपरा और पौराणिक कथाओं से परळी स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रमाणिक मान्यता है।

१०

नागेश्वर

गुजरात

दारुकावनद्वारका

श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग बड़ौदा क्षेत्रांतर्गत गोमती द्वारका से ईशानकोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग को ही कोई-कोई नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से 17 मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्वर) शिवलिंग ही नागेश ज्योतिर्लिंग है।

११

रामेश्वर

तमिल नाडु

रामेश्वरम

श्रीरामेश्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। यहाँ लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव शंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्वर या श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से जाना जाता है।

१२

घृष्णेश्वर

महाराष्ट्र

निकट एलोराऔरंगाबाद जिला

श्रीघुश्मेश्वर (गिरीश्नेश्वर) ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहते हैं। इनका स्थान महाराष्ट्र प्रांत में दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल गांव के पास है।


यहाँ आपको शिव महापुराण की मुख्य कथाएं एवं शिव भक्ति का महात्म्य का वर्णन प्राप्त होगा।

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